एंटीबॉयोटिक के दुष्प्रभाव।

यदि आपसे यह सवाल पूछा जाए कि एच.आई.वी. और एंटीबॉयोटिक में कौन ज्यादा खतरनाकहै तो शायद आप प्रश्नकर्ता की समझ पर हंसें कि कैसा बेवकूफ आदमी है, जो एच.आई.वी. और एंटीबॉयोटिक को एक तराजू पर रख रहा है। जबकि दुनिया जानती है कि एच.आई.वी. संक्रमणहोने पर शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है, जिससे बीमार व्यक्ति को छोटी सी बीमारी होने पर भी उसका ठीक होना दूभर हो जाता है। जबकि एंटीबॉयोटिक वे दवाएं हैं, जो हानिकारिक बैक्टीरिया को मारने के लिए रोगी को दी जाती हैं। लेकिन सच यही है कि भारत में जिस तरह से एंटीबॉयोटिक दवाएं गलत ढ़ंग से ली जारही हैं, उससेबैक्टीरिया ड्रग रजिस्टेंस होरहे हैं। और यदि कुछ सालों तक यही हालात रहे तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब बैक्टीरिया पर एंटीबॉयोटिक दवाएंअसर करना बंद कर देंगी और तब रोगी के लिए हालात एच.आई.वी. जैसे हो जाएंगे। यह मानना है लखनऊ के तमाम प्रतिष्ठित डॉक्टरों का, जो विश्व स्वास्थ्य दिवस पर दिनांक 07 अप्रैल को लखनऊ में विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित सेमिनारों में अपने विचार प्रकट कर रहे थे।

क्यों ली जाती हैं एंटीबॉयोटिक दवाऍं

आम तौर से बैक्टीरिया से होने वाली तमाम बीमारियों केउपचार में एंटीबॉयोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। लेकिन डॉक्टर की फीस बचाने के चक्कर में आदमी कोई भी बीमारी होने पर मेडिकल स्टोर से एंटीबॉयोटिक दवाएं खरीद कर खा लेता है। लेकिन इस चक्कर में अक्सर ये दवाएं या तो ओवर डोज हो जाती हैं, या फिर कम मात्रा में ली जाती हैं, जिससे रोगी को बड़ी मात्रा में इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। जब बीमारी की गम्भीरता के मुकाबले कम पॉवर की दवाएं ली जाती हैं, अथवा बीमारीठीक हो जाने पर पूरा कोर्स किये बिना ही दवा बंद कर दी जाती है, तो बैक्टीरिया के कमजोर पड़ जाने के कारण बीमारी तो ठीक हो जाती है, लेकिन बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि वे धीरे-धीरे उसके प्रति रजिस्टेंस डेवलप कर लेते हैं। यही कारण है कि 20 साल पहले जो एंटीबॉयोटिक दवाएं फोर्थ जनरेशन के तौर पर प्रयोग में लाई जाती थीं, अब सामान्य बीमारियों में फर्स्ट जनरेशन मानकर दी जाने लगी हैं। इसके दुष्परिणामस्वरूप मच्छर की दवाओं का असरहीन होना तथा टीबी जैसी बीमारी का खतरनाक रूप ले लेना हमारे सामने है। और जब ये दवाएं अधिक पॉवर की ले जाती हैं, तो उनके तमाम तरह के साइड इफेक्ट पैदा हो जाते हैं। परिणामस्वरूप रोगी के शरीर में अन्य खतरनाक बीमारियां जन्म ले लेती हैंq।

घातक हो सकता है बिना डॉक्टरी परामर्श के दवा लेना

डॉक्टरों का मानना है कि आमतौर से 70 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं, जो दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से बीमार होते हैं। ऐसा सिर्फ एंटीबॉयोटिक दवाओं के कारण ही नहीं होता, बल्कि अन्य तमाम एलोपैथिक दवाओं के कारण भी यही होता है। इसके पीछे मुख्य वजह है कि लोगों द्वारा बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेकर खा लेने की प्रवृत्ति। देखने में आता है कि लोग बदनदर्द होने परब्रूफेन, सर्दी होने परसीट्रिजिन, खांसी होने पर कोई भीकफ सीरप, नींद न आने परएल्प्राजोल, पेटदर्द होने परमेट्रोजिलआदि दवाएं ले लेते हैं। जबकि लोगोंको पता नहीं होता है कि इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं। और गलत ढंग से लिये जाने पर ये फायदा के स्थान पर नुकसान ज्यादा करती हैं।डॉक्टरों का कहना है किब्रुफेनशरीर मे दर्द होने पर ली जाने वाली सबसे कॉमन दवा है। जबकि इसकी वजह से गैस्ट्राइटिस हो सकती है तथा किडनी तथा लिवर फेल्योर हो सकता है। इसी प्रकारमेट्रोजिलके लम्बे समय तक इस्तेमाल से कैंसर तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी (नसों की समस्या),एल्प्राजोलसे शरीर खोखला, आत्महत्या के विचार आना,निमुसलाइडसे लिवर तथा किडनी फेल्योर होना,डिस्प्रिनसे गैस्ट्राइटिस, किडनी फेल्योर,स्टेरायडसे मांसपेशी व हड्डी की कमजोरी, संक्रमण की आशंका तथासीट्रीजिन-एविलसे निद्रा व सुस्ती के प्रभाव देखने को मिलते हैं।

ऐसे में हमें क्या करना चाहिए

जाहिर सी बात है कि एंटीबॉयोटिक ही नहीं यदि कोई भी दवा सही तरीके से इस्तेमाल न की जाए, तो उससे फायदा की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है। इसलिए इस बात को गांठ बांध लें कि बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा (यहां तक कि विटामिन और मल्टीविटामिन्स भी) न लें और डॉक्टर द्वारा किसी भी दवा का जितना कोर्स बताया जाए, उसे पूरा अवश्य करें। और हां, सिर्फ एलोपैथी पर ही निर्भरता न रखें। यदि बीमारी बहुत ज्यादा गम्भीर न होतो इलाज की अन्य विधियों (आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, होम्योपैथी) का भी प्रयोग करें।

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